लालसा है दीप सा उद्दीप्त जीवन पाऊं में
नित्य स्वयं जलता रहूं पर लालिमा फैलाऊं मैं
लालसा है दीप सा उद्दीप्त जीवन पाऊं मैं
है नियति यद्यपि धरातल में तिमिर
पर यही है कामना कि कौमुदी बन पाऊं मैं
लालसा है दीप सा उद्दीप्त जीवन पांव मैं
धमनियां बाती बने और रक्त रूपी तेल हो
मन में कतिपय भी कहीं
किंचित न कोई मैल हो देह को कर दूं मृदा
नवदीप स्वयं बन जाऊं मैं
लालसा है दीप सा उद्दीप्त जीवन पाऊं मैं
दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
अज़हर जमाल सिद्दीकी